BA Semester-1 Aahar, Poshan evam Swachchhata - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2637
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता

उच्च रक्त चाप (Hypertensoin)

उच्च रक्तचाप में आहार को बताने से पहले उच्च रक्तचाप को जानना बहुत जरूरी है। उच्च रक्तचाप को जाने बिना रोगी के लिए आहार तालिका बनाना बहुत कठिन है। यदि हम उच्च रक्तचाप के रोगी के आहार से वसा युक्त पदार्थ तथा नमक कम नहीं करेंगे तो रोगी का रक्तचाप कम नहीं होगा तथा वसा द्वारा धमनियों के मोटा होने से रोगी के हृदय ही गति भी रुक सकती है। इसलिए उच्च रक्तचाप को जानना बहुत जरूरी है।

आपने दिल की धड़कन तो सुनी होगी, यही दिल की धड़कन रक्तदाब को उत्पन्न कर रक्त को हृदय से शरीर के दूरस्थ भागों में भेजती है। हृदय जब संकुचन एवं विमोचन करता है तो हृदय में धड़कन उत्पन्न हो जाती है। हृदय के संकुचन के समय हृदय की मांसपेशियाँ

सिकुड़ती हैं तथा रक्त को एसेण्डिंग एओरटा में भेजती हैं जहाँ रक्त शरीर में आगे बढ़ने के लिए धमनियों पर दबाव डालता है जिससे धमनियाँ अधिकतम विस्तार तक फैल जाती हैं। संकुचन द्वारा उत्पन्न हुए इस दबाव को रक्त के संकुचन का दबाव या सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर कहते हैं। जब हृदय में विमोचन की क्रिया होती है अर्थात जब हृदय फैलता है तो रक्त का दबाव कम होता जाता है तथा धमनियाँ सुकुड़ना शुरू कर देती हैं। इस दबाव को रक्त के विमोचन का दबाव कहते हैं। एक सामान्य एवं स्वस्थ मनुष्य में रक्तचाप निम्न होता है-

रक्त के संकुचन का दबाव  - 110-130 मिली मीटर ऑफ मरकरी

रक्त के विमोचन का दबाव - 70-90 मिली लीटर ऑफ मरकरी

एक सामान्य स्त्री का रक्तचाप सामान्य आदमी की अपेक्षा थोड़ा कम होता है। सभी व्यक्तियों में रक्तचाप एक-सा नहीं होता है यदि कोई रक्तचाप किसी व्यक्ति के लिए सामान्य है तो वही रक्तचाप दूसरे दूसरे व्यक्ति में उच्च रक्तचाप के लक्षण उत्पन्न कर सकता है। उदाहरणतः यदि किसी व्यक्ति में सामान्यतः रक्तचाप 130/90 मिली लीटर ऑफ मरकरी रहता है तो दूसरे व्यक्ति में इतने ही रक्तचाप पर सिर में दर्द तथा चक्कर आना शुरू हो जायेगा तथा व्यक्ति उच्च रक्तचाप की श्रेणी में आयेगा।

आयु बढ़ने के साथ-साथ रक्त धमनियाँ कमजोर होती जाती हैं जिससे हृदय को ज्यादा दबाव के साथ रक्त भेजना पड़ता है जिससे धमनियों पर रक्त का ज्यादा दबाव पड़ता है। इसी दबाव को उच्च रक्त चाप या हाइपरटेंशन कहते हैं।

उच्च रक्तचाप कोई रोग नहीं है बल्कि एक लक्षण है जो हृदय या रक्त संचालन प्रणाली में रोग हो जाने से उत्पन्न होता है। आयु के बढ़ने के साथ-साथ धमनियाँ मोटी होने लगती हैं जिसे एथोरोस्क्लेरोसिस कहते हैं। जिससे उनमें लचीलापन आ जाता है तथा हृदय को रक्त प्रवाह हेतु ज्यादा दबाव लगाना पड़ता है। उच्च रक्त चाप को हम दूसरे शब्दों में इस प्रकार भी कह सकते हैं-

यदि किसी व्यक्ति का सिसटोलक रक्तचाप 120 मिलीमीटर से ऊपर तथा डायस्टोलिक रक्तचाप 80 मिलीलीटर से ऊपर हो जाता है तथा वह व्यक्ति कुछ परेशानी महसूस करने लगे तो हम उसे उच्च रक्तचाप वाला व्यक्ति कहते हैं।

उच्च रक्तचाप के प्रकार

1. डाइवरजेण्ट उच्च रक्तचाप – जब सिस्टोलिक रक्तचाप डायस्टोलिक रक्त चाप की तुलना में ज्यादा बढ़ जाता है ता उसे डाइवरजेण्ट उच्च रक्तचाप कहते है; जैसे- गर्भावस्था में, मोटापे में आदि।

2. कॉनवरजेण्ट उच्च रक्त- जब सिस्टोलिक एवं डायस्टोलिक रक्तचाप लगभग समान अनुपात में लगातार बढ़ते जाते हैं तो उसे कॉनवरजेण्ट उच्च रक्तचाप लगभग समान अनुपात में लगातार बढ़ते जाते हैं तो उसे कॉनह्वरजेण्ट उच्च रक्त चाप कहते हैं। यह व्यक्ति के लिए अधिक खतरनाक होता है। हृदय पर लगातार बना रहता है जिससे गुर्दे क्षतिग्रस्त हो सकते हैं, रेटीना की धमनी में परिवर्तन आ जाते हैं तथा आँखों की रोशनी धीमे-धीमे कम होने लगती है।

3. आवश्यक उच्च रक्तचाप — इस प्रकार के रक्तचाप में रक्त चाप माप की दृष्टि से तो ज्यादा होता है लेकिन व्यक्ति में उच्च रक्तचाप से सम्बन्धित किसी प्रकार की परेशानी नहीं उत्पन्न करते हैं।

उच्च रक्त चाप की अवस्थाएँ

1. हल्का उच्च रक्तचाप - जब डायस्टोलिक रक्तदाब 90 से 105 मिली मीटर मरकरी होता है तो रोगी को चक्कर आने लगते हैं तथा जी-सा घबड़ाता है।

2. मध्यम उच्च रक्तचाप – जब डायस्टोलिक रक्तचाप 105 से 120 मिली मीटर मरकरी होता है तो रोगी को साँस लेने में कठिनाई महसूस होने लगती है, सिरदर्द शुरू हो जाता है तथा रोगी अत्यधिक घबराहट महसूस करने लगता है।

3. अत्यधिक उच्च रक्तचाप – जब डायस्टोलिक रक्तचाप अत्यधिक अर्थात 120 मिली मीटर मरकरी से ज्यादा हो जाता है, तब रोगी को सांस लेने में काफी परेशानी होती है तथा मरीज के नाक, कान व मुँह से खून आने की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है। यदि मरीज का इलाज तत्काल न किया जाये तो मरीज की दिमाग की नस फटने का डर बना रहता है तथा रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।

उच्च रक्तचाप के कारण

1. गर्भावस्था - गर्भवती स्त्रियों में उच्च रक्तचाप पाया जाता है जो कि गर्भावस्था के बाद सही हो जाता है।

2. वंशानुक्रम - आमतौर यह देखा गया है कि परिवार में यदि किसी को उच्च रक्तचाप रहा है तो उनकी सन्तानों में भी उच्च रक्तचाप की संभावना ज्यादा हो जाती है तथा वह जीवन की किसी भी अवस्था में इस रोग से ग्रसित हो जाते हैं।

3. व्यक्ति की बुरी आदतें - व्यक्तियों की बुरी आदतों से अर्थ है कि जो व्यक्ति धूम्रपान करते हैं अथवा मदिरापान करते हैं तथा अन्य नशीला पदार्थ ग्रहण करते हों। इन व्यक्तियों में उच्च रक्तचाप की अधिकता पायी जाती है।

4. मानसिक तनाव - आज मनुष्य का जीवन काफी तनावपूर्ण हो गया है और यही तनाव पूर्ण जीवन मनुष्य में उच्च रक्तचाप का महत्त्वपूर्ण कारण है। मनुष्य यदि क्रोध, डर, दुःख आदि संवेगों से ग्रस्त रहता है तो शीघ्र ही उसके रक्तचाप में वृद्धि हो जाती है।

5. बीमारियाँ निम्नलिखित प्रकार की बीमारियाँ उच्च रक्तचाप का कारण होती हैं-

• नालिकाविहीन ग्रन्थियों द्वारा स्रावित होने वाले हार्मोन्स के असन्तुलन से।

• अन्य सिस्टेमिक बीमारियाँ।

• हृदय तथा रक्त संचालन प्रणाली सम्बन्धित बीमारियाँ।

• गुर्दे सम्बन्धित रोग।

6. मोटापा - जो व्यक्ति वसायुक्त पदार्थों का ज्यादा सेवन करते हैं, वह व्यक्ति अधिक मोटे हो जाते हैं तथा उनके रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा भी बढ़ जाती हैं। यह कोलेस्ट्रॉल की मात्रा धमनियों में जमा हो जाती है जिससे धमनियाँ मोटी हो जाती हैं तथा रक्त को प्रवाह के लिए अधिक दबाव लगाना पड़ता है। यही अधिक दबाव उच्च रक्तचाप होता है।

7. वृद्धावस्था — उम्र के साथ-साथ रक्तचाप भी बढ़ता जाता है तथा वृद्धावस्था में अधिकांश मनुष्य उच्च रक्त चाप के शिकार हो जाते हैं।

8. भोजन सम्बन्धी आदतें— कुछ व्यक्ति अपनी जरूरतर से ज्यादा भोजन को ग्रहण करते हैं जिससे उनमें भी उच्च रक्तचाप की सम्भावना रहती है। विशेषतः उन व्यक्तियों में जो तले हुए पदार्थ तथा मिठाइयाँ अधिक पसन्द करते हैं।

उच्च रक्तचाप के लक्षण

1. उच्च रक्तचाप की दूसरी अवस्था में जबकि रोगी प्रारम्भिक अवस्था में कोई उपचार नहीं लेता है, तब उल्टी होना, जी घबड़ाना, अत्यधिक बेचैनी, पाचन सम्बन्धित विकारों का होना शुरू हो जाता हैं आँखों में धुंधलापन छाने लगता है तथा रोगी को नींद नहीं आती है।

2. उच्च रक्तचाप की तीसरी अवस्था में अर्थात भयानक अवस्था में हृदय की गति अवरुद्ध होने लगती है, नाक से खून आना तथा दिमाग की नली फटने से मरीज बेहोश भी हो सकता है, गुर्दे खराब होने लगते हैं तथा हृदय गति रुकने से रोगी की मृत्यु भी हो जाती है।

3. उच्च रक्तचाप की प्रारम्भिक अवस्था में व्यक्ति किसी प्रकार की परेशानी का अनुभव नहीं करता है लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता जाता है, व्यक्ति के सिर में दर्द शुरू हो जाता है, चक्कर आने लगते हैं तथा दिल की धड़कन तेज हो जाती है।

उच्च रक्तचाप के रोगी के लिए आवश्यक पौष्टिक तत्त्व

1. खनिज लवण - उच्च रक्तचाप वाले व्यक्तियों के आहार में सोडियम की मात्रा कम होनी चाहिए क्योंकि सोडियम की ज्यादा मात्रा रक्तचाप को बढ़ा देती है। ऊतकों में सोडियम की अधिक मात्रा से ऊतक पानी का अवशोषण कर फूल जाते हैं तथा शरीर में सूजन कर देते हैं। अन्य खनिज लवण सामान्य मात्रा में देना चाहिए।

2. कैलोरी - आहार में कैलोरी की मात्रा आवश्यकता के अनुसार ही होनी चाहिए। मोटे व्यक्तियों के लिए कम ऊर्जा वाले आहार की व्यवस्था करनी चाहिए जिससे कि रोगी का वजन कम हो सके तथा रक्त में धमनियों को मोटा करने वाले पदार्थ (कोलेस्ट्रॉल) की भी कमी हो।

3. विटामिन्स - विटामिन्स की सामान्य मात्रा की जरूरत पड़ती है जिसकी पूर्ति के लिए मल्टी- विटामिन की गोली लेना आवश्यक है।

4. वसा- आहार में वसा की मात्रा कम होनी चाहिए तथा वसा तेल के रूप में दी जाने चाहिए क्योंकि इसमें आवश्यक वसीय अम्लों की अधिकता होती है तथा यह रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करता है; जैसे- रिफाइण्ड तेल, सरसों का तेल, प्राणिज्य वसा, जैसे- घी, मक्खन आदि नहीं देने चाहिए क्योंकि यह रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को बढ़ा देते हैं।

5. प्रोटीन - उच्च रक्तचाप वाले रोगी को आहार में प्रोटीन की सामान्य मात्रा की आवश्यकता पड़ती है लेकिन अत्यधिक उच्च रक्तचाप की अवस्था में प्रोटीन की मात्रा सामान्य से 20 ग्राम कम कर देनी चाहिए क्योंकि प्रोटीन युक्त पदार्थों में सोडियम की मात्रा भी काफी ज्यादा होती है।

6. कार्बोहाइड्रेट – उच्च रक्तचाप के रोगी को कार्बोहाइड्रेट की सामान्य मात्रा की आवश्यकता पड़ती है लेकिन यह कार्बोहाइड्रेट स्टार्च के रूप में देना चाहिए।

उच्च रक्त चाप के आहार में

1. अनुमोदित भोज्य पदार्थ — सौम्य आहार के अन्तर्गत आने वाले सभी पौष्टिक भोज्य पदार्थ। तिल, सरसों, सोयाबीन का तेल तथा अंसतृप्त वसीय अम्ल वाले तेल।

2. वर्जित भोज्य पदार्थ – अधिक नमकयुक्त भोज्य पदार्थ, समुद्री मछली, मांस, चटपटे मसोलयुक्त व्यंजन, घी, मक्खन, चीज, सूखे फल आदि।

उच्च रक्तचाप के उपचार में आहार का अपना एक विशेष महत्त्व है। आहार द्वारा हम उच्च रक्तचाप में थोड़ी कमी ला सकते हैं तथा उच्च रक्तचाप के एक बार नियन्त्रण हो जाने पर आहार द्वारा काफी समय तक इस पर नियन्त्रण रख सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति का उच्च रक्तचाप मोटापे के द्वारा है तो उस व्यक्ति के आहार में से वसायुक्त पदार्थों को हटाकर तथा कम कैलोरी वाला आहार देकर उसके उच्च रक्तचाप को सही किया जा सकता है। इसी तरह से यदि कोई व्यक्ति ज्यादा नमक सेवन करता है तो उसको कम नमक वाला आहार देना चाहिए। आहार के महत्त्व को समझते हुए केम्पनर नामक चिकित्सक से सन् 1944 में एक विशेष प्रकार का आहार उच्च रक्तचाप के उपचार के लिए प्रस्तावित किया, जिसके उपयोग से उच्च रक्तचाप के रोगियों को सही करने में बहुत सफलता प्राप्त हुई।

केम्पनर का चावलयुक्त आहार—केम्पनर ने उच्च रक्तचाप से पीड़ित रोगियों का सफलतापूर्वक उपचार आहार द्वारा किया तथा उन्होंने अपने द्वारा प्रस्तावित आहार में मुख्य भोज्य पदार्थ चावल ही रखा था इसलिए इसे केम्पनर का चावलयुक्त आहार कहते हैं। केम्पनर की इस आहार व्यवस्था से अग्रलिखित पौष्टिक तत्त्व प्राप्त होते हैं-

क्लोराइड - 200 माइक्रोग्राम

विटामिन 'ए' - 5000 अ० रा० इ०

विटामिन 'डी' - 1000 अ० रा० इ०

कैलोरी - 2000 कैलोरी

प्रोटीन - 20 ग्राम

वसा - 5 ग्राम

सोडियम - 200 माइक्रोग्राम

इस आहार में निम्न विशेषताएँ होती हैं-

1. रोगी अपनी इच्छानुसार शक्कर खा सकता है लेकिन औसतन 100 ग्राम शक्कर प्रतिदिन के हिसाब से लेनी चाहिए।

2. रोगी को 250-350 ग्राम चावल उबालकर या वाष्प में पकाकर प्रतिदिन दिये जाते हैं।

3. तरल पदार्थ बहुत कम मात्रा में देने चाहिए तथा यह तरल पदार्थ फलों के रस के रूप में 700 से 1000 मि० ली० तक दिए जाते हैं।

4. सभी प्रकार के फल तथा फलों के रस रोगी ले सकता है लेकिन इसकी मात्रा 1000 मि० लीटर के ज्यादा न हो।

5. काष्ठफल, खजूर, सूखेफल खाने की अनुमति नहीं दी जाती है तथा एक से ज्यादा केला भी नहीं दिया जाता है।

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    अनुक्रम

  1. आहार एवं पोषण की अवधारणा
  2. भोजन का अर्थ व परिभाषा
  3. पोषक तत्त्व
  4. पोषण
  5. कुपोषण के कारण
  6. कुपोषण के लक्षण
  7. उत्तम पोषण व कुपोषण के लक्षणों का तुलनात्मक अन्तर
  8. स्वास्थ्य
  9. सन्तुलित आहार- सामान्य परिचय
  10. सन्तुलित आहार के लिए प्रस्तावित दैनिक जरूरत
  11. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  12. आहार नियोजन - सामान्य परिचय
  13. आहार नियोजन का उद्देश्य
  14. आहार नियोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें
  15. आहार नियोजन के विभिन्न चरण
  16. आहार नियोजन को प्रभावित करने वाले कारक
  17. भोज्य समूह
  18. आधारीय भोज्य समूह
  19. पोषक तत्त्व - सामान्य परिचय
  20. आहार की अनुशंसित मात्रा
  21. कार्बोहाइड्रेट्स - सामान्य परिचय
  22. 'वसा’- सामान्य परिचय
  23. प्रोटीन : सामान्य परिचय
  24. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  25. खनिज तत्त्व
  26. प्रमुख तत्त्व
  27. कैल्शियम की न्यूनता से होने वाले रोग
  28. ट्रेस तत्त्व
  29. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  30. विटामिन्स का परिचय
  31. विटामिन्स के गुण
  32. विटामिन्स का वर्गीकरण एवं प्रकार
  33. जल में घुलनशील विटामिन्स
  34. वसा में घुलनशील विटामिन्स
  35. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  36. जल (पानी )
  37. आहारीय रेशा
  38. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  39. 1000 दिन का पोषण की अवधारणा
  40. प्रसवपूर्व पोषण (0-280 दिन) गर्भावस्था के दौरान अतिरिक्त पोषक तत्त्वों की आवश्यकता और जोखिम कारक
  41. गर्भावस्था के दौरान जोखिम कारक
  42. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  43. स्तनपान/फॉर्मूला फीडिंग (जन्म से 6 माह की आयु)
  44. स्तनपान से लाभ
  45. बोतल का दूध
  46. दुग्ध फॉर्मूला बनाने की विधि
  47. शैशवास्था में पौष्टिक आहार की आवश्यकता
  48. शिशु को दिए जाने वाले मुख्य अनुपूरक आहार
  49. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  50. 1. सिर दर्द
  51. 2. दमा
  52. 3. घेंघा रोग अवटुग्रंथि (थायरॉइड)
  53. 4. घुटनों का दर्द
  54. 5. रक्त चाप
  55. 6. मोटापा
  56. 7. जुकाम
  57. 8. परजीवी (पैरासीटिक) कृमि संक्रमण
  58. 9. निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन)
  59. 10. ज्वर (बुखार)
  60. 11. अल्सर
  61. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  62. मधुमेह (Diabetes)
  63. उच्च रक्त चाप (Hypertensoin)
  64. मोटापा (Obesity)
  65. कब्ज (Constipation)
  66. अतिसार ( Diarrhea)
  67. टाइफॉइड (Typhoid)
  68. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  69. राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवाएँ और उन्हें प्राप्त करना
  70. परिवार तथा विद्यालयों के द्वारा स्वास्थ्य शिक्षा
  71. स्थानीय स्वास्थ्य संस्थाओं के द्वारा स्वास्थ्य शिक्षा
  72. प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रः प्रशासन एवं सेवाएँ
  73. सामुदायिक विकास खण्ड
  74. राष्ट्रीय परिवार कल्याण कार्यक्रम
  75. स्वास्थ्य सम्बन्धी अन्तर्राष्ट्रीय संगठन
  76. प्रतिरक्षा प्रणाली बूस्टर खाद्य
  77. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

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